खबरों के खिलाड़ी:संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद हो रही राजनीति में कितने विरोधाभास? जानिए विश्लेषकों की राय – Khabaron Ke Khiladi How Many Contradictions Are In Politics After Sanjay Singh Arrest Know Analysts Opinion

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बीते कुछ दिनों से आम आदमी पार्टी फिर चर्चा में है। वजह है पार्टी के नेता और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह की गिरफ्तारी। उनकी गिरफ्तारी शराब घोटाला मामले में हुई है। इस मामले में आप केंद्र सरकार के खिलाफ मुखर हो गई है। वहीं, कांग्रेस ने इस पर सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। इस घटनाक्रम के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या इससे विपक्षी गठबंधन की एकता और मजबूत होगी या यह मामला सिर्फ आम आदमी पार्टी बनाम केंद्र की लड़ाई बनकर रह जाए। खबरों के खिलाड़ी की इस कड़ी में हमने इन्हीं सवालों के जवाब जानने की कोशिश की। बतौर विश्लेषक हमारे साथ मौजूद थे विनोद अग्निहोत्री, अवधेश कुमार, प्रेम कुमार, समीर चौगांवकर और गीता भट्ट। 

संजय सिंह की गिरफ्तारी और शराब घोटाला मामले को कैसे देखते हैं? 

गीता भट्ट: देखिए, कुछ न कुछ सच्चाई होगी, जिस कारण से गिरफ्तार नेताओं को जमानत नहीं मिल पा रही है। अब संजय सिंह गिरफ्तार हुए हैं। आप के नेता अपनी साफ-सुथरी छवि को दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। वे आरोप लगा रहे हैं कि ईडी और सीबीआई का दुरुपयोग किया जा रहा है। दूसरी ओर, पंजाब में आप सरकार ने कांग्रेस के पांच बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया है। एक विधायक को चंडीगढ़ से गिरफ्तार किया गया है। क्या वहां सत्ता का दुरुपयोग नहीं हो रहा है? एक तरफ इंडिया गठबंधन में सीटों पर बातचीत चल रही है, दूसरी तरफ पंजाब में विरोधाभास की स्थिति है, जहां कांग्रेस आप की प्रतिद्वंद्वी है।

अवधेश कुमार: आजकल कानूनी लड़ाई को राजनीतिक लड़ाई में बदलने की कला विकसित हो गई है। लालू पर कांग्रेस राज में केस दर्ज हुआ था। संयुक्त मोर्चा सरकार के समय उनकी गिरफ्तारी हुई। यह अलग बात है कि उस समय रविशंकर प्रसाद जैसे कई वकील केस लड़ रहे थे। पर भाजपा का उसमें कोई प्रत्यक्ष योगदान नहीं था। उन्हें जेल में डालने के लिए सेना बुलानी पड़ी थी। जमानत के समय हाथी-घोड़े लाए गए जैसे जंग हो। कुल मिलाकर, गलत होने के बावजूद मामले को राजनीतिक रंग देकर उसका लाभ उठाया गया। वर्तमान में भी ज्यादातर इंडिया गठबंधन के नेताओं के खिलाफ एजेंसियों की कार्रवाई चल रही है। कांग्रेस के दो शीर्ष नेताओं पर कार्रवाई चल रही है। अब इन मामलों को राजनीतिक रंग देकर आरोपों से बचने की कोशिश की जा रही है। मनीष सिसोदिया ने भी ऐसा ही किया था। जब उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा था तो उन्होंने गांधी जी से आशीर्वाद लिया। भगत सिंह के नाम से ट्वीट किया। अब संजय सिंह के मामले में भी मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश हो रही है। संजय सिंह सरकार का हिस्सा नहीं हैं, ऐसे में यह मामला और गंभीर है।

प्रेम कुमार: पंजाब में अगर सरकार पुलिस का दुरुपयोग कर रही है, इसलिए दिल्ली में भी जो हो रहा है, वह ठीक है, ऐसा कहना गलत है। ऐसा राजनीतिक विश्लेषण सही नहीं है। अदालत में सुनवाई चल रही है। अदालत के बाहर जो हो रहा है, वही राजनीति है। कानूनी प्रक्रिया की खामी का इस्तेमाल राजनीतिक रूप से किया जा रहा है। जमानत क्यों नहीं मिल रही है? पीड़ित से आपको सबूत नहीं मांगना है। पर यहां उनसे सबूत मांगा जा रहा है। संजय सिंह को राहत मिल जाएगी, यदि वे भी अजीत पवार बन बन जाएं। हो सकता है उन्हें अजीत पवार से बढ़िया कुर्सी भी मिल जाए। उन पर से पीएमएलए भी हटा लिया जाएगा। यह मामला राजनीतिक प्रतिशोध का है। एजेंसियों के इस्तेमाल का है। अदालती प्रक्रिया को भी राजनीति में घसीटा जा रहा है।

अवधेश कुमार: पूरी दिल्ली को शराब की नगरी बनाने की नीति लागू हुई थी। ये भ्रष्टाचार है या नहीं। आम आदमी पार्टी ने नीति को वापस क्यों लिया। पैसे पार्टी के लिए आए हैं। ईडी को आम आदमी पार्टी को एक पक्ष बनाना ही पड़ेगा। बगैर किसी लालच के ऐसी नीति कोई बना ही नहीं सकता। क्या भारत के इतिहास में किसी सरकार ने ऐसी नीति थी?

समीर चौगांवकर: 227 शराब दुकानों की घोषणा की गई थी। जब मुख्य सचिव ने कहा था कि नई नीति राजस्व के हिसाब से नुकसानदायी होगी, तब उन्होंने उपराज्यपाल से शिकायत की थी। उसके बाद सीबीआई ने मामला दर्ज किया था। इस मामले में दक्षिण भारत के लोगों को हिस्सा देने के लिए गड़बड़ी की गई। कारोना काल में शराब ठेकेदारों के जो 144 करोड़ रुपये माफ किए गए थे, उसमें से बड़ा हिस्सा आम आदमी पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए दिया गया। अरोड़ा सरकारी गवाह बन गया है। मामले में संजय सिंह के निजी सचिव सर्वेश मिश्रा का जिक्र है। पैसा कहां गया, यह ईडी को पता करना है। पूरा मामला धारणा का है। आप भ्रष्टाचार वाली पार्टी बन गई है, जनता यह स्वीकार कर लेती है तो आप को नुकसान होगा। अगर आप इसे राजनीतिक मुद्दा बताने में सफल हो जाती है, तो उसे फायदा हो सकता है। 45 करोड़ रुपये आवास पर खर्च करने का मामला भी उसके लिए बेहतर नहीं होगा।

इंडिया गठबंधन के कई नेता संजय सिंह के आवास पर पहुंचे। क्या विपक्षी खेमे में इस घटनाक्रम की वजह से क्या मजबूती आएगी?

विनोद अग्निहोत्री: राजनीति में भ्रष्टाचार का यह पहला मामला नहीं है। जवाहरलाल नेहरू के समय भी ऐसे मामले सामने आए। जेपी का आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ। फिर बोफोर्स कांड, हवाला कांड हुआ। असंतुष्ट पार्टियां सड़क पर उतरती हैं। राम मंदिर आंदोलन में जब भाजपा के नेता गिरफ्तार हुए, तब पार्टी सड़क पर उतरी। पहली बार यह हो रहा है कि केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई के समर्थन में सत्तारूढ़ पार्टी प्रदर्शन कर रही है। एजेंसी को जांच करने दीजिए। विपक्ष के लोग विरोध दर्ज कराएंगे। सत्तारूढ़ दल को प्रदर्शन की क्या जरूरत है। जब यह दिखता है तो शक पैदा होता है कि इस मामले में राजनीति हो रही है। आरोपी को अपने आरोप नहीं पता, लेकिन सत्ता पक्ष के प्रवक्ता आकर बता देते हैं कि चार्जशीट में ये बातें लिखी हैं। यह बातें संदेह पैदा करती हैं। लालू जी सजायाफ्ता भी हो गए, लेकिन उनके प्रतिबद्ध वोटरों के लिए वे पाक-साफ हैं। कई नेताओं के खिलाफ चार्जशीट हो जाती है, लेकिन वे बड़े मतों से चुनाव जीत जाते हैं।

जैन डायरी में लालकृष्ण आडवाणी, माधवराव सिंधिया जैसे नेताओं ने इस्तीफा दिया। नैतिकता का वह एक दौर था। अब यह दौर है कि जेल चले गए, फिर भी मंत्री बने हुए हैं। महाराष्ट्र में भी यह हुआ, दिल्ली में भी यह हुआ। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच दिल्ली में कम, लेकिन पंजाब में ज्यादा तल्ख संबंध हैं। मनोज झा, संजय राउत तो समर्थन में आ गए, लेकिन कांग्रेस ने सधी हुई प्रतिक्रिया दी। 

गीता भट्ट: दिल्ली में तो भाजपा ही विपक्षी दल है, वह विपक्षी दल होने के नाते प्रदर्शन कर रही है। इस नजरिए से भी देखा जाना चाहिए। विपक्षी गठबंधन की बात करें तो इसमें बहुत विरोधाभास हैं। अरविंद केजरीवाल ने तो एक रैली में कह दिया कि अगले पचास साल तक दिल्ली-पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार रहेगी। बिहार में राजद-जदयू मिलकर चुनाव लड़ना चाहते हैं, दूसरे दलों को कम सीटें देना चाहते हैं। वामपंथी इसके लिए तैयार नहीं हैं। कांग्रेस में केरल में क्या करेगी? क्या वामपंथियों के साथ चुनाव लड़ेगी? बंगाल में तृणमूल दूसरे दलों को ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं है।

छत्तीसगढ़ के सीएम ने कहा है कि अब देखना, हमारे यहां भी छापे पड़ेंगे। क्या चुनावी राज्यों में यह धारणा बनाने की कोशिश हो रही है? क्या सब अपना हित देख रहे हैं?

गीता भट्ट: छत्तीसगढ़ में तो मुख्यमंत्री के सचिवालय में ही भ्रष्टाचार का मामला सामने आया था। धुआं उठ रहा है तो कहीं तो आग लगी होगी। वहां के सीएम का बयान राजनीतिक है। जब वे चुनाव में आए थे, तब उन्होंने कहा था कि शराबबंदी कराएंगे, लेकिन छत्तीसगढ़ में राजस्व शराब के ठेकों से ही आ रहा है। वहां भी विरोधाभास है। 

प्रेम कुमार: चुनावी राज्यों में आम आदमी पार्टी इतनी बड़ी पार्टी नहीं है कि दूसरे विपक्षी दलों को चिंता हो। ईडी का दुरुपयोग होना राष्ट्रीय समस्या है। यह आम आदमी पार्टी की समस्या नहीं है। शराब नीति पर चिंता तो राष्ट्रीय स्तर पर होनी चाहिए। नीतिगत असहमति हो सकती है। दिल्ली में जो नई आबकारी नीति आई तो उससे दुकानें बढ़ जातीं। फायदा दिखाया जाता है, तभी अफसर उसे मंजूरी देते हैं। बाद में नुकसान होने लगा तो फैसला वापस लिया गया। मंत्री के रूप में अगर कोई फैसला लेता है और उसे जेल में जाना पड़ता है तो इस देश में मुख्यमंत्री या मंत्री बनना गुनाह हो जाएगा। 

अवधेश कुमार: इस मामले में 11 लोग गिरफ्तार हुए हैं। दो बड़ी गिरफ्तारियां हो गई हैं तो हमारा फोकस इस पर हो गया। लंबे समय से पंजाब, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में छापे पड़े। 80 से ज्यादा लोगों से पूछताछ हुई, तब गिरफ्तारी हुई। भाजपा की रणनीति आम आदमी पार्टी को परास्त करने की हो सकती है। हैरत इस बात की है कि जो बाकी लोग हैं, उनकी गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई है। मनीष सिसोदिया को सीबीआई ने गिरफ्तार किया है। कोई मामला इतना राजनीतिक नहीं हो सकता। जब छापेमारी पड़ती है तो भाजपा आंदोलन करती है तो संदेह पैदा होती है। राजनीतिक प्रभाव क्या पड़ेगा, यह कोई नहीं जानता। अरविंद केजरीवाल की राजनीति का जवाब देने में कोई पार्टी सफल नहीं है। जिन्हें टिकट नहीं मिलते, वह उनकी पार्टी से चुनाव लड़कर वोट काट देते हैं।

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