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इलाहाबाद हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा की छाता तहसील के शाहपुर गांव स्थित बांके बिहारी मंदिर के नाम दर्ज जमीन का राजस्व अभिलेखों में समय-समय पर इंदराज बदलने के आदेशों को रद्द कर दिया है। तहसीलदार को दो माह में मंदिर की जमीन बांके बिहारी मंदिर के नाम दर्ज करने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने इससे पहले स्थिति स्पष्ट करने के लिए इससे जुड़े सभी रिकॉर्ड तलब किए थे। कोर्ट में हाजिर एसडीएम, तहसीलदार व लेखपाल तहसील छाता ने गलती मानी थी। आवेदन मिलने पर इंदराज बदलने की जानकारी दी थी। अब याचिका स्वीकार कर ली है और गलती दुरुस्त करने का आदेश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने श्री बिहारी जी सेवा ट्रस्ट की याचिका पर दिया है। याचिका पर अधिवक्ता राघवेन्द्र प्रसाद मिश्र ने बहस की। इनका कहना था कि विधिक प्रक्रिया अपनाए बगैर शाहपुर स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर की भूमि पर पहले कब्रिस्तान फिर पुरानी आबादी दर्ज कर दिया गया। राजस्व अभिलेखों में पहले यह जमीन मंदिर ट्रस्ट के नाम दर्ज थी।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने एसडीएम व तहसीलदार छाता से पूछा कि शाहपुर गांव के भूखंड संख्या 1081 की स्थिति समय-समय पर क्यों बदली गई। कोर्ट ने इसके लिए आधार वर्ष की खतौनी मांगी लेकिन वह खतौनी किसी पक्ष के पास नहीं थी। इस पर कोर्ट ने समय समय हुए इंदराज से जुड़े सभी रिकॉर्ड तलब किए। फिर फैसला लिया।
याचिका के अनुसार प्राचीन काल से ही मथुरा के शाहपुर गांव स्थित गाटा संख्या 1081 बांके बिहारी महाराज के नाम से दर्ज था। भोला खान पठान ने राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से 2004 में उक्त भूमि को कब्रिस्तान दर्ज करा लिया। जानकारी होने पर मंदिर ट्रस्ट ने आपत्ति दाखिल की। प्रकरण वक्फ बोर्ड तक गया और आठ सदस्यीय टीम ने जांच में पाया कि कब्रिस्तान गलत दर्ज किया गया है। इसके बावजूद जमीन पर बिहारी जी का नाम नहीं दर्ज किया गया। बल्कि पुरानी आबादी दर्ज कर दिया गया। इस पर यह याचिका दाखिल की गई थी।
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