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डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय
– फोटो : अमर उजाला
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वैश्वीकरण के इस दौर में अधिक से अधिक भाषाओं को समझने और संवाद करने की जरूरत पड़ रही है। इसका मुख्य माध्यम है अनुवाद। तकनीक इसमें सहायक बन रही है। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के भाषा विज्ञान विभाग में अनुवाद पर काफी काम चल रहा है। इसमें स्पीड टीबी प्रोजेक्ट महत्वपूर्ण है। तिब्बती-बर्मन, ऑस्ट्रो-एशियाई भाषा के साथ 10 भारतीय भाषाओं पर काम किया जा रहा है। यदि आपको मणिपुरी भाषा नहीं आती, तो आप अपने मोबाइल फोन में हिंदी में कोई शब्द या वाक्य बोलें, मणिपुरी (मैतई) का विकल्प चुनें, इससे हिंदी का शब्द मणिपुरी भाषा में टाइप होगा।
भाषा विज्ञान विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर व प्रोजेक्ट को- प्रिंसिपल इन्वेस्टर्स पल्लवी आर्या ने बताया कि स्पीड टीबी प्राेजेक्ट केंद्र सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स व कम्युनिकेशन मंत्रालय की ओर से दिया गया है। तीन वर्ष का यह प्राेजेक्ट है, दो वर्ष का काम पूरा हो चुका है।
प्रोजेक्ट में भाषा विज्ञान विभाग के साथ आईआईटी खड़गपुर, मणिपुर यूनिवर्सिटी, तेजपुर यूनिवर्सिटी और कार्या कंपनी मिलकर काम रहे हैं। परियोजना में कम से कम 11,000 घंटों का एक भाषण (स्पीच) डेटासेट बनाया जा रहा है। इसमें 10 भारतीय भाषाओं (असम की बोडो, मणिपुर की मैतई, नगालैंड की चोकरी, त्रिपुरा की कोक बोरोक आदि शामिल हैं) के लिए 1,000 घंटे शामिल हैं। अंग्रेजी और हिंदी भाषाओं के लिए 500-500 घंटे निर्धारित है।
परियोजना में संबंधित भाषाओं की पहचान के लिए स्पीच रिकग्ननिशन (भाषण पहचान) का सहारा लिया जा रहा है। इसके लिए फोन सेट, भाषा मॉडल और बेसलाइन मॉडल भी तैयार किया जा रहा है। परियोजना के लिए करीब 1.9 करोड़ रुपये की ग्रांट दी गई है।
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अपशब्दों को पकड़ने का प्रोजेक्ट हो चुका है पूरा
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी व भाषा विज्ञान विद्यापीठ के निदेशक प्रो. प्रदीप श्रीधर ने बताया कि संस्थान के भाषा विज्ञान विभाग में मल्टीलिंगुअल कॉरपोरा बनाया गया था, जो कि फेसबुक और बाकी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपशब्दों की पहचान करने के लिए था। यह प्रोजेक्ट फेसबुक की ओर से दिया था और 72 लाख रुपये की ग्रांट दी गई थी। हिंदी, अंग्रेजी के साथ बांग्ला भाषा में सोशल मीडिया इस्तेमाल होने पर वाले अपशब्द और भड़काऊ शब्दों की पहचान की गई। वर्ष 2022 तक इस प्रोजेक्ट पर काम किया गया।
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