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अतीत का अलीगढ़
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
मौजूदा वक्त में अलीगढ़ शहर में पहली से बारहवीं तक के लगभग 3100 और हाथरस में 2700 स्कूल हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 1850 तक अलीगढ़ जिले (तत्कालीन हाथरस तहसील भी शामिल )में एक भी स्कूल नहीं था जिसे आज के संदर्भ में आधुनिक कहा जा सके। अलीगढ़ के बच्चों को शिक्षा के लिए आगरा, मेरठ, दिल्ली और बरेली जिलों में जाना पड़ता था।
1845 में अंग्रेजी शासन ने एक जांच कराई जिसमें पता चला कि अरबी-फारसी की शिक्षा देने वाले 159 मदरसे और संस्कृत के 137 विद्यालय थे। कोल क्षेत्र में इनकी संख्या 86 थी। इन स्कूलों में विद्यार्थियों की औसत उपस्थिति 2905 थी। अर्थात आज पूरे जिले में जितने स्कूल हैं , उस वक्त उससे भी कम विद्यार्थी थे। इन विद्यार्थियों में अधिकतर मुस्लिम, ब्राह्मण, वैश्य और कायस्थ थे। स्कूल बेहद छोटे थे और इनमें पढ़ाने वाले शिक्षकों को बेहद मामूली तनख्वाह मिला करती थी। इस हालात के बावजूद उस दौर में अलीगढ़ में शिक्षा का स्तर ऊंचा माना जाता था।
यही वजह थी कि जिले को प्रयोग के तौर पर सरकारी स्कूलों को खोलने के लिए अलीगढ़ का चयन किया गया। यह व्यवस्था 1850 में लागू की गई। सबसे पहले कोल, हाथरस, अतरौली, टप्पल, अकबराबाद और खैर तहसीलों में सरकारी स्कूल खोले गए। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम (अंग्रेजों के शब्दों में म्यूटिनी या विद्रोह) का इस स्कूली व्यवस्था पर बुरा असर पड़ा। आलम यह हुआ कि 1858 तक सभी स्थापित स्कूल ठप ही रहे। 1857 के काल में सिर्फ हाथरस और इगलास में ही स्कूल खुले रहे।
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