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अतीत का अलीगढ़
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
राज्य सरकार ने एक शासनादेश के जरिए प्रदेश के सभी जिलों के लिए नया जिला गजेटियर तैयार करने का आदेश दिया है। उसके लिए कमेटियों का गठन किया जा रहा है। अलीगढ़ का अंतिम गजेटियर 1909 में तैयार किया गया था। लगभग 400 पेजों की इस पुस्तक में लगभग 114 साल पुराने अलीगढ़ के भूगोल, नदियों, प्रशासनिक व्यवस्था, सिंचाई व ड्रेनेज सिस्टम, पुलिस व्यवस्था आदि के बारे में विस्तार से वर्णन है। इस संबंध में अतीत का अलीगढ़ नाम से एक समाचार श्रृंखला शुरू की जा रही है। उम्मीद है कि पुराने अलीगढ़ के बारे में जानकारी पाठकों को रुचिकर लगेगी। कृपया अपनी राय से हमें अवगत कराएं।
लगभग डेढ़ सौ साल पुराना उपसंभाग अलीगढ़ कोल, बरौली और मोरथल से मिलकर बना था। उस वक्त अलीगढ़ तहसील 355.64 वर्ग मील या 227606 एकड़ में फैला हुआ था। 1840 तक अलीगढ़ को आम बोलचाल में हुजूर तहसील कहा जाता था। इसे बाद में कोल तहसील का नाम दिया गया, क्योंकि अलीगढ़ का ज्यादातर हिस्सा कोल परगना का था। 1909 में तैयार किए गए आखिरी गजेटियर की मानें तो अलीगढ़ में झीलों और जलस्रोतों की भरमार थी। जाहिर है कि ये झीलें और जलस्रोत वक्त की गर्दिश में खो गए।
अलीगढ़ मूलतः एक खेतिहर इलाका था। 1870 के बंदोबस्त के बाद 1906-07 तक इसका 69 फीसदी यानि कि 157052 एकड़ सिंचित था। इसमें से भी 31.14 फीसदी जमीन पर दोहरी फसल हुआ करती थी। बारिश पर्याप्त नहीं थी। 42.75 फीसदी इलाका नहरों की सिंचाई पर निर्भर करता था। ये नहरें गंगा, गंग नहर और गंगा की छोटी-छोटी सहायक नदियों से निकाली गई थीं। रबी की फसल पर जोर ज्यादा था। गेहूं के अलावा चना और जौ रबी की मुख्य फसलों में शामिल थी। खरीफ की फसल के साथ कपास और अरहर भी ठीकठाक मात्रा में उगाई जाती थी। लेकिन समय के साथ कपास और अरहर की जगह ज्वार और बाजरा ने ले ली थी। ज्वार 24.91 और बाजरा 11.06 फीसदी रकबे में उगाया जाने लगा था।
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