कुरुक्षेत्र:मोदी के जेंडर जस्टिस बनाम राहुल के सोशल जस्टिस के बीच होगी चुनावी लड़ाई – Election Battle Will Be Between Modi’s Gender Justice Vs Rahul’s Social Justice

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Election battle will be between Modi's gender justice vs Rahul's social justice

pm modi vs rahul gandhi
– फोटो : सोशल मीडिया

विस्तार


संसद का विशेष सत्र, नया भवन और महिलाओं को लोकसभा व विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण देने वाला नारी शक्ति वंदन विधेयक क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का वो तारणहार अस्त्र है जो अगले लोकसभा चुनावों में विपक्षी इंडिया गठबंधन की सारी किलेबंदी को ध्वस्त करके भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों के गठबंधन एनडीए की नैया को चुनावी वैतरणी के पार लगा देगा या फिर इंडिया गठबंधन महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन करते हुए इसमें पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों की महिलाओं की हिस्सेदारी का सवाल जोड़ कर मोदी सरकार के इस हथियार को जाति जनगणना के सामाजिक न्याय के अपने अस्त्र से कुंद करके हवा का रुख अपने पक्ष में मोड़ देगा। जिस तरह से सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों अपने अपने एजेंडे पर आगे बढ़ रहे हैं उससे तय है कि अगले लोकसभा चुनावों में लड़ाई महिला आरक्षण बनाम पिछड़े वर्गों को आरक्षण और जातीय जनगणना के मुख्य मुद्दे के बीच होगी। या यूं कहें कि अगले लोकसभा चुनाव में मुकाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जेंडर जस्टिस और राहुल गांधी और इंडिया गठबंधन के सोशल जस्टिस के मुद्दे के बीच होगा। 

सरकार द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाने की खबर ने देश में हलचल मचा दी और विपक्षी इंडिया गठबंधन चौकन्ना हो गया कि हमेशा अपने औचक फैसलों से देश को चौंकाने और विपक्ष को बचाव की मुद्रा में लाने वाली मोदी सरकार इस बार क्या करेगी। एक देश एक चुनाव, इंडिया बनाम भारत, रोहिणी आयोग की रिपोर्ट और महिला आरक्षण विधेयक जैसे तमाम मुद्दे हवा में उछले कि सरकार इस विशेष सत्र में कुछ ऐसा करेगी जिससे विपक्षी इंडिया गठबंधन के मुद्दों महंगाई, बेरोजगारी, जातीय जनगणना आदि की हवा निकल जाएगी।

सरकार ने पहले जानकारी दी कि विशेष सत्र में चार विधेयकों को पारित कराया जाएगा, फिर उनकी संख्या आठ बताई जाने लगी और आखिरकार सत्र जब शुरु हुआ तो केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अपनी बैठक में नारी शक्ति वंदन विधेयक-2023 को मंजूरी दी।यह कुछ और नहीं बल्के बदले हुए नाम के साथ लगभग वही महिला आरक्षण विधेयक था जैसा 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने राज्यसभा में भारी संघर्ष के बाद पारित करवाया था और गठबंधन की मजबूरी की वजह से लोकसभा में ला ही नहीं पाई थी। सरकार के रणनीतिकारों को पूरी उम्मीद थी कि एक तरफ यह विधेयक इंडिया गठबंधन में कांग्रेस और अन्य सहयोगी दलों विशेषकर राजद और समाजवादी पार्टी के बीच पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से कोटा देने के मुददे पर ऐसी दरार डाल देगा कि विपक्षी एकता बिखर जाएगी। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस विधेयक के समर्थन को विवश होगी और सरकार इसे पारित करवा कर पूरा श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देकर भाजपा अगले चुनाव में आधी आबादी के बीच जाएगी। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस ने न सिर्फ विधेयक पेश होने से पहले ही सोशल मीडिया और अन्य समाचार माध्यमों के जरिए लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के एक तिहाई आरक्षण के लिए पिछले 27 सालों में किए गए अपने प्रयासों और राजीव गांधी द्वारा पंचायतों में महिलाओं को दस फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की याद दिलाते हुए महिला आरक्षण के मुद्दे पर खुद को भाजपा के समानांतर खड़ा करने की पुरजोर कोशिश की। बल्कि साथ ही अपने पुराने रुख से एकदम उलट उसने नए विधेयक में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों के भीतर अलग से पिछड़ी जाति की महिलाओं के लिए कोटा निर्धारित करने की मांग भी जोड़ दी। इस तरह कांग्रेस ने संकेत दे दिए कि वह इस मामले में इंडिया गठबंधन के अपने सहयोगियों के साथ है।






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