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बिहार में जातिगत गणना के आंकड़े जारी कर नीतीश कुमार ने अपना सबसे बड़ा राजनीतिक दांव चल दिया है। इसे लेकर राजनीति भी तेज हो गई है। जाति आधारित गणना की जरूरत कितनी है और यह कितना बड़ा राजनीतिक मुद्दा है, इसी पर खबरों के खिलाड़ी की इस कड़ी में विश्लेषकों ने चर्चा की। चर्चा के लिए बतौर विश्लेषक हमारे साथ मौजूद थे विनोद अग्निहोत्री, अवधेश कुमार, प्रेम कुमार, समीर चौगांवकर और गीता भट्ट।
क्या जातिगत जनगणना मौजूदा राजनीति की जरूरत बन गई है? क्या बिहार के आंकड़े सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार साबित हो गए हैं?
गीता भट्ट: दो अक्तूबर को गांधी जयंती के मौके पर बिहार सरकार ने इस गणना के आंकड़े जारी किए। जबकि गांधीजी तो जाति आधारित राजनीति के विरोधी थे। क्या सोचकर इसके आंकड़े जारी किए गए हैं, यह बड़ा सवाल है। इसके राजनीतिक कारण स्पष्ट हैं। 2019 के चुनाव में भाजपा को 44% ओबीसी वोट मिले। इसी वजह से आंकड़े जारी हुए। राहुल गांधी ने कह दिया कि 84% पिछड़े हैं।
प्रेम कुमार: यह राजनीतिक मुद्दा निश्चित तौर पर है, लेकिन यह तब तक मुद्दा नहीं बनेगा, जब तक इसका तथ्यात्मक आधार न हो। 1931 के आधार पर अभी हम आरक्षण देते हैं। इसका अपडेशन क्यों नहीं होना चाहिए? राजनीति तो होगी क्योंकि ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण इसलिए दिया गया था क्योंकि इससे ज्यादा की गुंजाइश नहीं थी। तो वास्तविक जनगणना क्यों नहीं होना चाहिए? जातीय जनगणना जब होगी, तब आरक्षण आंकड़ों के आधार पर वास्तविक होगा।
राहुल गांधी कह रहे हैं कि केंद्र सिर्फ चुनिंदा सचिव पिछड़े वर्ग से हैं। क्या यह सही है?
समीर चौगांवकर: मंडल आयोग को इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने नजरअंदाज किया था। आज राहुल गांधी इसका समर्थन कर रहे हैं। बिहार में सर्वदलीय बैठक में भाजपा समर्थन कर देती है। ओडिशा में भाजपा विरोध कर देती है। बंगाल में भाजपा के नेता ममता बनर्जी को चिट्ठी लिखकर जातीय सर्वेक्षण कराने की मांग करती है। भाजपा का रुख इस मामले में साफ नहीं है। भाजपा को डर है कि हिंदुत्व के नाम पर उसकी छतरी में आए दल कहीं दूर न हो जाएं। भाजपा नहीं चाहेगी कि उसका 44 फीसदी ओबीसी वोटर उससे दूर चला जाए।
अवधेश कुमार: अज्ञेय ने कहा था, ‘देवता इन प्रतीकों के कर गये हैं कूच, कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है।’ देश पीछे जाने के लिए तैयार नहीं है। यह हारे हुए, ठुकराए हुए और अपनी अंतिम लड़ाई लड़ रहे नेताओं की कोशिश है कि जातिगत राजनीति जैसे मुद्दे उठाए जाएं। अगले लोकसभा चुनाव में बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी को पांच से ज्यादा सीटें नहीं मिलने वालीं। मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करने के बाद वीपी सिंह की राजनीति खत्म हो गई थी। बिहार में कई लोगों से तो जाति ही नहीं पूछी गई, फिर आंकड़ा कैसे आ गया। यह जनगणना नहीं, गणना है। बिहार में छोटी जाति वालों को लगेगा कि यह सर्वे तो हमें ही खत्म कर देगा। मुस्लिम-यादव समीकरण मजबूत होगा तो सबसे पहले तो नीतीश की ही राजनीति खत्म होगी। आजादी के समय के नेताओं ने कहा था कि अंग्रेज बांटने की राजनीति करते थे, इसलिए 1931 जैसी गणना नहीं करेंगे। तो क्या तब के नेता पिछड़ों के विरोधी थे?
प्रधानमंत्री ने कहा कि सबसे बड़ी जाति तो गरीबी है। यह कितना बड़ा वक्तव्य है?
प्रेम कुमार: मुझे मोदी जी के लिए कॉमरेड नरेंद्र मोदी बोलने का मन हो रहा है। कार्ल मार्क्स तो कहते थे कि अमीर और गरीब, दो ही वर्ग हैं। हमें लगता है कि अब अगर मोदी जी गरीबों की बात कर रहे हैं तो उन्हें कॉमरेड मोदी बोलना चाहिए।
विनोद अग्निहोत्री: यह मंडल-2 है। जिस तरह से आक्रामक और उग्र प्रतिक्रिया उस समय हुई थी, अबकी बार सुर धीमे हैं। हर चीज का विकास क्रम होता है। देश-समाज आगे जाना चाहता है। 1931 में अंग्रेजों ने यह गणना की थी। अब नब्बे साल बाद इसकी बात हो रही है। पिछड़ों को आप किस आधार पर आरक्षण देंगे। हिंदू एकता की ही बात करनी है तो क्या आरक्षण खत्म करेंगे? हिंदू एकता नहीं टूटेगी, हिंदुत्व की राजनीति पर असर पड़ सकता है। भाजपा को राम मंदिर आंदोलन के बाद से हिंदुत्व की राजनीति में सफलता मिली है। भाजपा की चिंता यही है। सवाल देश की एकता का है। हिंदू एकता या जातीय एकता की बात करते हैं वो देश को तोड़ने की बात करते हैं। मोहन भागवत सभी को हिंदू बताते हैं तो सरकार एक ही डीएनए मानकर उसी रास्ते पर क्यों नहीं चलती? अगले लोकसभा चुनाव में जाति आधारित गणना बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। प्रधानमंत्री खुद ओबीसी वर्ग से आते हैं तो भाजपा के पक्ष में यह बात जाती है।
अवधेश कुमार: जाति भेद से ऊपर उठकर काम करने की जरूरत है। हिंदू एकता का अर्थ हिंदू-मुस्लिम एकता का विरोध नहीं है। भारत की एकता से किसी को दिक्कत नहीं है, लेकिन जातियों का बंटवारा तोड़ने के लिए अगर हिंदू समाज की एकता की बात होती है तो इसमें क्या दिक्कत है?
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