[ad_1]
एएमयू में सर सयैद डे आयोजन
– फोटो : अमर उजाला
विस्तार
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के गुलिस्तान-ए-सैयद में संस्थापक सर सैयद अहमद खान की 206वीं जयंती के अवसर पर सर सयैद डे का आयोजन किया गया। सर सैयद डे का आरम्भ यूनिवर्सिटी मस्जिद में फज्र की नमाज के बाद कुरान ख्वानी के साथ हुआ। तत्पश्चात कुलपति प्रोफेसर गुलरेज ने विश्वविद्यालय के शिक्षकों और अधिकारियों के साथ सर सैयद के मजार पर फातेहा पड़ा और पुष्पांजलि अर्पित की।
सर सैयद डे के मुख्य अतिथि इलाहबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के न्यायमूर्ति अताउ रहमान मसूदी ने कहा कि प्रस्तावना के शुरुआती शब्द भारत के लोगों से ‘मैं’ द्वारा निरूपित स्वयं से जुडी धारणाओं को त्यागने और ‘हम’ की भावना को आत्मसात करके निर्धारित लक्ष्यों की ओर बढ़ने का आह्वान करते हैं। न्यायमूर्ति मसूदी ने एएमयू में प्रवेश पाने की अभिलाषा के साथ 1985 में एएमयू की अपनी यात्रा को याद करते हुए इसे कानूनी अध्ययन को अपने करियर के रूप में चुनने के लिए एक बड़ी प्रेरणा बताया और अपनी सफलता का श्रेय एएमयू परिसर में अपने अल्पकालीन प्रवास को दिया।
मानद अतिथि, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व कुलपति सैयद शाहिद महदी, जो एएमयू के पूर्व छात्र भी हैं, ने सर सैयद पर दो-राष्ट्र सिद्धांत के निर्माता या अलगाववादी होने के आरोपों की निंदा करते हुए फरवरी 1884 में लाहौर से प्रकाशित एक अखबार में छपी खबर का हवाला देते हुए कहा कि लाला संगम लाल के नेतृत्व में आर्य समाज के एक प्रतिनिधिमंडल ने सर सैयद से मुलाकात की और उन्हें केवल मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि सभी भारतीयों के लिए आवाज उठाने के लिए धन्यवाद दिया।
रेख्ता फाउंडेशन के संस्थापक संजीव सराफ ने कहा कि अलीगढ़ और उर्दू उनके लिए पर्यायवाची हैं और जब उन्होंने पहली बार उर्दू भाषा और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए काम करने के बारे में सोचा, तो यह अलीगढ़ ही था जो इस सन्दर्भ में एक सर्वोत्तम और सर्वाधिक संसाधनों के केंद्र के रूप में उनके दिमाग में आया। अलीगढ़ के इतिहास के पन्ने कई उर्दू कवियों और लेखकों की कहानियां बताते हैं और कई उर्दू उत्कृष्ट कृतियों की उत्पत्ति इसी स्थान से हुई है।
[ad_2]
Source link