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जे . जे. टी. विश्वविद्यालय द्वारा नेशनल कांफ्रेंस
– फोटो : संवाद
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क्लस्टर यूनिवर्सिटी श्रीनगर के कुलपति प्रो. कयूम हसन ने कहा कि जितनी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन मानव करता है, उसका सकारात्मक निपटान भी उसी स्तर पर कर ले जाना ही नेट जीरो है। ऐसा तभी संभव है जब ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रण में रखा जाए। सर्वाधिक पौधरोपण के साथ वनसंरक्षण भी जरूरी है।
13 अक्तूबर को डीएस कॉलेज के सभागार में कॉलेज व जेजेटी विश्वविद्यालय झुंझुनू राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रो. हसन बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। जलवायु परिवर्तन : प्रभाव, नवाचार समाधान और नेट जीरो उपलब्धि विषय पर आयोजित सम्मेलन में प्रो. हसन ने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों जैसे सौर ऊर्जा, जल विद्युत, वायु ऊर्जा आदि को निरंतर बढ़ावा देने की आवश्यकता है। प्रो बलबीर सिंह पुटोला ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या के प्रति विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को संवेदनशील तथा जागरूक होना चाहिए। एनके सिंह ने बताया कि पर्यावरणीय संरक्षण करना चाहिए। वर्ष 2050 तक वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, मीथेन आदि हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को शून्य प्रतिशत तक लाना है। जिससे जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग जैसी भयानक वैश्विक समस्या से निजात मिल सके।
सीआरपीएफ रिक्रूटमेंट नई दिल्ली के डीआईजी एनके सिंह ने नेट जीरो के संदर्भ में कहा कि वर्ष 2050 तक वैश्विक स्तर पर हानिकारक गैसों के उत्सर्जन में संतुलन स्थापित कर शून्य प्रतिशत तक लाना है। हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्वविद्यालय गढ़वाल के पूर्व कुलपति प्रो. एसके सिंह ने कहा कि ओजोन परत के संरक्षण तथा वृक्षारोपण, उद्योगों के संतुलित विकास सहित पर्यावरणीय हितों के अनुकूल नवीन ऊर्जा संसाधनों की खोज की जरूरत है। डॉ. रक्षपाल सिंह ने भी संबोधित किया।
कॉलेज प्रबंध समिति के सचिव राजीव अग्रवाल ने कहा कि सम्मेलन का विषय हमारे जीवन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्राचार्य प्रो. मुकेश कुमार भारद्वाज ने अतिथियों व प्रतिभागियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। संचालन डॉ अजय कुमार, डॉ नीलम श्रीवास्तव व डॉ पूजा सिंह ने किया। इस अवसर पर प्रो अरुण कुमार गुप्ता, सम्मेलन की संयोजक प्रो. अंजुल सिंह, डॉ. मंजू सिंह, प्रो. वेदवती राठी, प्रो. भारत सिंह, प्रो. बीना अग्रवाल आदि मौजूद रहे। ऑनलाइन व ऑफलाइन करीब 160 प्रतिभागियों ने अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।
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