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Idukki Catholic Priest joins BJP
– फोटो : सोशल मीडिया
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सियासी रोड मैप तो आने वाले विधानसभा के चुनावों को लेकर चार प्रमुख चुनावी राज्यों में तैयार किया जा रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश की सियासत में लोकसभा का जो सियासी रोड मैप और तस्वीर तैयार की जा रही है वह सबसे अलग है। सियासत की इस तस्वीर में सभी राजनीतिक दल बसपा के कोर वोट बैंक के माध्यम से अपनी-अपनी सियासी इबारत लिखने की न सिर्फ तैयारी कर रहे हैं बल्कि दलितों के लिए बड़ा मंच भी तैयार कर रहे हैं। सियासी गलियारों में चर्चाएं इस बात की सबसे ज्यादा हो रही है कि अखिलेश के पीडीए और कांग्रेस के पासी, जाटव वोट पर निशाना लगाने के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरीके से दलित सम्मेलन की तैयारी की है उससे कहीं ऐसा ना हो कि मायावती के कर वोट बैंक में जमकर सेंधमारी हो जाए। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यूपी की सियासत में तैयार किए जा रहे “मिशन डी” यानी मिशन दलित का बड़ा व्यापक असर आने वाले लोकसभा के चुनाव में देखने को मिल सकता है।
राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जैसे राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में दलित वोट को जोड़ने की सियासत चल रही है। लेकिन इन सबसे इतर उत्तर प्रदेश में जिस तरीके से दलित वोट को अपने साथ जोड़ने की राजनीतिक दलों ने सियासी जंग शुरू की है वह बहुत रोचक हो चली है। राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार देवेंद्र शुक्ला कहते हैं कि राज्य में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अपने पीडीए मॉडल से दलितों को साधने की पूरी सियासी बिसात बिछा चुके हैं। समाजवादी पार्टी के नेताओं ने हाल में हुए उपचुनाव में अपनी जीत का पूरा श्रेय इसी पीडीए यानी पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक को ही दिया था। समाजवादी पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि उनकी पार्टी की ओर से जारी दिशा निर्देशों के मुताबिक सभी कार्यकर्ता और पदाधिकारी पीडीए के मुताबिक ही अपने गठबंधन को न सिर्फ मजबूत कर रहे हैं बल्कि आगे की सियासी राह को भी बढ़ा रहे हैं। पार्टी इसी योजना के मुताबिक आने वाले दिनों में होने वाले सम्मेलनों में दलित पिछड़ा और अल्पसंख्यकों को न सिर्फ मजबूती के साथ आगे रखा जाएगा बल्कि उनके क्षेत्र और इलाकों में पार्टी के बड़े-बड़े जिम्मेदार नेताओं और पदाधिकारी को भी बृहद स्तर पर भेजने की योजना है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व मंत्री राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि अखिलेश यादव ने जिस पीडीए की बात की है दरअसल समाज में इस तबके के लोगों लोगों के साथ मिलकर देश और प्रदेश के बेहतर निर्माण में आगे बढ़ा जा सकता है।
समाजवादी पार्टी जिस तरीके से उत्तर प्रदेश में पिछड़े दलित और अल्पसंख्यकों के माध्यम से अपनी सियासी राह बना रही है ठीक उसी तर्ज पर कांग्रेस ने भी दलितों को अपने पाले में रखने का एक बड़ा दांव खेला है। हालांकि यह दांव शुरुआती दौर में तो दलितों की एक बिरादरी पासी समुदाय पर फोकस करते हुए किया है लेकिन पार्टी सिर्फ पासी ही नहीं बल्कि जाटव समेत अन्य दलित को अपने साथ जोड़ने का मेगा अभियान चलाने जा रही है। कांग्रेस पार्टी की ओर से जारी कार्यकर्ताओं और पदाधिकारी को निर्देश के मुताबिक व अपने-अपने क्षेत्र और इलाकों में दलित समुदाय के साथ भोज करें और उनको संगठनात्मक स्तर पर जोड़ें। इसके साथ-साथ आगे की रणनीतियों के लिए वरिष्ठ पदाधिकारी के संग बैठकों का आयोजन करने का निर्देश तो मिला ही है बल्कि आने वाले दिनों में दलितों के बीच में पार्टी के बड़े नेताओं के आयोजन करने की रणनीति बनी है। सियासी जानकार और वरिष्ठ पत्रकार अब्दुल कयूम कहते हैं कि जिस तरीके से कांग्रेस ने अपने बड़े दलित नेताओं के चेहरे को आगे करके इस समाज को अपने साथ जोड़ने की प्रक्रिया शुरू की है उससे पार्टी के नेताओं को उम्मीद है कि आने वाले चुनाव में वह अपने खोए हुए इस महत्वपूर्ण वोट बैंक को अपने साथ जोड़ पाएंगे। कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत कहते हैं कि उनकी पार्टी जातिगत आधार पर कोई भेदभाव नहीं करती है। कांग्रेस पार्टी हमेशा से सभी धर्म और जातियों के लोगों को आगे बढ़ाने की बात करती आई है। क्योंकि समाज के आखिरी पायदान पर खड़े हर व्यक्ति को आगे लाना है। इसलिए उन सभी लोगों के साथ कांग्रेस कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।
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