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रियासतें भले ही खत्म हो गई हों, लेकिन रियासतकालीन परंपराओं का निर्वाह ग्वालियर में आज भी जारी है। इसका उदाहरण है ग्वालियर में सिंधिया परिवार। सोमवार को दशहरा मनाया गया। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजशाही पोशाक में शमी पूजन किया। साथ ही अपने महल में राजशाही अंदाज में दरबार भी लगाया। इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि मेरे देश और राज्य में सुख शांति हो। जीवन में खुशहाली आए, यही कामना है। साथ ही वासुदेव कुटुंब की तरह मेरे देश में अमन-चैन कायम रहे।
बता दें कि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने बेटे महाआर्यमन के साथ ग्वालियर के मांढरे की माता का पूजन करने पहुंचे थे। जहां वे राजशाही पोशाक में पहुंचे थे। पूजने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सभी को दशहरे की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि शमी पूजन का बड़ा महत्व है। सभी को प्रभुश्री राम के बताए मार्ग पर चलना चाहिए। दशहरा प्रतीक है कि सदा बुराई पर अच्छाई की जीत होती है। असत्य पर सत्य की विजय होती है।
बता दें कि सिंधिया राजघराने की नौवीं पीढ़ी का नेतृत्व कर रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया परंपरागत वेश-भूषा में शमी पूजन स्थल मांढरे की माता पर पहुंचते हैं। लोगों से मिलने के बाद शमी वृक्ष की पूजा की जाती है। इसके बाद म्यान से तलवार निकालकर जैसे ही शमी वृक्ष को लगाते हैं। हजारों की तादाद में मौजूद लोग पत्तियां लूटने के लिए टूट पड़ते हैं। लोग पत्तियों को सोने के प्रतीक के रूप में ले जाते हैं।
सदियों पुरानी परंपरा
सिंधिया परिवार के मराठा सरदारों के मुताबिक दशहरे पर शमी पूजन की परंपरा सदियों पुरानी है। उस वक्त महाराजा अपने लाव-लश्कर व सरदारों के साथ महल से निकलते थे। सवारी गोरखी पहुंचती थी। यहां देव दर्शन बाद यहां शस्त्रों की पूजा होती थी। दोपहर तक यह सिलसिला चलता था। महाराज आते वक्त बग्घी पर सवार रहते थे। लौटते समय हाथी के हौदे पर बैठकर जाते थे। शाम को शमी वृक्ष की पूजा के बाद महाराज गोरखी में देव दर्शन के लिए जाते थे। वही परम्परा आज भी जारी है।
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