Lucknow:उर्दू अदब के चिराग प्रो. शारिब रुदौलवी दुनिया से हुए रुखसत, गम में डूबी उर्दू अदब व साहित्य की दुनिया – Shayar Sharib Rudauli Passed Away.

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shayar sharib rudauli passed away.

प्रोफेसर शारिब रुदौलवी।
– फोटो : अमर उजाला

विस्तार


उर्दू अदब की शमा को अपनी काबिलियत से रोशन करने वाले प्रो. शारिब रुदौलवी की तनकीद (समालोचना) की बुलंद आवाज बुधवार सुबह खामोश हो गई। कैफी आजमी अकादमी के अध्यक्ष रहे प्रो. शारिब ने 88 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। वह बीते कुछ दिनों से डेंगू से पीड़ित थे। उनका अपोलो अस्पताल में इलाज चल रहा था। देर शाम कर्बला अब्बास बाग में उनके चाहने वालों ने नम आंखों से उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया।

प्रो. शारिब के इंतकाल की खबर से उर्दू के अदीब और साहित्यकारों में गम की लहर दौड़ पड़ी। प्रो. शारिब के आखिरी दीदार के लिए अलीगंज स्थित आवास पर उनके चाहने वालों की सुबह से ही भीड़ जुट गई। उनको पुरसा देने के लिए फखरुद्दीन अली अहमद मेमोरियल सोसाइटी के अध्यक्ष तूरज जैदी, इरा मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलपति अब्बास अली मेंहदी, कर्रार जैदी सहित तमाम शायर और साहित्यकार उनके आवास पर पहुंचे। देर शाम ठाकुरगंज स्थित कर्बला अब्बास बाग में उन्हें सुपुर्द-ए-खाक किया गया।

प्रो. शारिब रुदौलवी का जन्म एक सितंबर 1935 को अयोध्या के रुदौली में हुआ था। उनका नाम मुसय्यब अब्बासी था, जो बाद में प्रो. शारिब रुदौलवी के नाम से मशहूर हुए। उनका विवाह उर्दू साहित्यकार शमीम निकहत से हुआ था। करीब पांच साल पहले शमीम निकहत का देहांत हो चुका है। प्रो. रुदौलवी की अपनी कोई औलाद नहीं थी। उन्होंने एक बच्ची को गोद लिया था। उसका नाम शोआ फातिमा रखा था। हालांकि, उस बच्ची का भी उनकी जिंदगी में ही देहांत हो गया। प्रो. शारिब ने उसके नाम से केशव नगर में शोआ फातिमा एजूकेशनल चैरिटेबल ट्रस्ट खोला। इस ट्रस्ट के अंतर्गत लड़कियों के स्कूल की स्थापना की गई। वो स्कूल की खुद ही देखभाल करते। गरीब बच्चों की फीस भी वह खुद ही जमा करते थे।

जेएनयू से सेवानिवृत्त होने के बाद अलीगंज में बस गए

साहित्यकार एसएन लाल प्रो. शारिब रुदौलवी के देहांत पर दुख जताते हुए कहते हैं कि बीती 8 अक्तूबर को उनकी पत्नी के नाम आयोजित ‘डॉ. शमीम निकहत उर्दू फिक्शन अवाॅर्ड 2023’ कार्यक्रम उनकी जिंदगी का आखिरी प्रोग्राम था। उन्होंने बताया कि प्रो.शारिब दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से रिटायरमेंट के बाद लखनऊ के अलीगंज क्षेत्र में बस गए थे। उन्होंने उर्दू के लिए बहुत काम किए। उनकी जबान इतनी मीठी थी कि वह किसी को मुंह पर बुरा भी कह देते, तो किसी को बुरा नही लगता था। उनका जन्म रुदौली के एक शिक्षित जमींदार परिवार में हुआ था। दादा और पिता अरबी और फारसी के विद्वान माने जाते थे। 

उन्होंने उर्दू साहित्य में अपनी उच्च शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त की। प्रोफेसर एहतेशाम हुसैन की देखरेख में आधुनिक साहित्यिक आलोचना के सिद्धांतों पर अपना शोध प्रबंध लिखा। दिल्ली विश्वविद्यालय के दयाल सिंह कॉलेज में उर्दू संकाय सदस्य के रूप में उन्होंने अपना कॅरिअर शुरू किया। वर्ष 1990 में वह एक रीडर के रूप में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में शामिल हुए, यहां वह साल 2000 में सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने बताया कि प्रो. शारिब रुदौलवी ने अपने कॅरिअर की शुरुआत एक शायर के रूप में की थी, लेकिन बाद में उनकी पहचान समालोचक के तौर पर हुई।

प्रो. शारिब से खून का नहीं मोहब्बत का है रिश्ता

कैफी आजमी अकादमी के महासचिव सईद मेंहदी प्रो. शारिब के साथ बिताए दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि उनसे खून का नहीं, मोहब्बत का रिश्ता था। अकादमी का अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने हमेशा संस्था के हित में काम किया। किसी भी प्रस्ताव को रिजेक्ट नही करते थे। उन्होंने बताया कि प्रो. शारिब उर्दू अदब के बड़े आलोचक होने के साथ ही प्रगतिशील आंदोलन से भी शुरुआत से जुड़े थे। उनका लेखन हमेशा इंसानियत पर होता था। उनके शागिर्द आज भी कई बड़ी यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं।

मना करना नहीं जानते थे प्रो. शारिब

शिक्षाविद व साहित्यकार प्रो. साबिरा हबीब भर्राई आवाज में कहती हैं कि प्रो. शारिब रुदौलवी से उनका रिश्ता नोकझोंक वाला था। इतने बड़े काबिल इंसान होने के बावजूद उनमें जरा सा भी घमंड नही था। उन्होंने कहा कि उनको मना करना आता ही नही था। अनजान आदमी के बुलाने पर भी उसके कार्यक्रम में शरीक होते थे। वह अपनी बीमारी और बुढ़ापे की कमज़ोरी जैसी हालत में भी हर जगह पहुंचने की कोशिश करते थे। कई बार इसी बात को लेकर भी उनसे नोकझोंक हो जाया करती थी। अपनी बेटी को खोने के बाद उन्होंने तमाम बेटियों को पाला था।

दिल में रहेगा याद का उनकी हमेशा नूर

मशहूर शायर सुहैल काकोरवी कहते हैं कि प्रो. शारिब रुदौलवी हमेशा मुझ पर मेहरबान रहे। किताबें लिखने में वो हमेशा मेरी रहनुमाई करते। मैं जब मुहावरे की किताब लिख रहा था, तब उन्होंने काफी मदद की थी। उन्होंने बताया कि मेरी किताबों का विमोचन भी उनके हाथों हुआ है।

शारिब रुदौलवी हैं बजाहिर नजर से दूर,

दिल में रहेगा याद का उनकी हमेशा नूर….।

पुरस्कार एवं सम्मान

यश भारती, पश्चिम बंगाल उर्दू एकेडमी के नेशनल अवाॅर्ड सहित 21 प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं।

 



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